On His blidness in hindi

नमस्ते  आज मैं आपको 12th की poem को explain करूँगा
On his blindness

John Milton 

जब मैं समझा ये दुनिया रोशनी खो चुकी है और मेरी आंखें अंधी हो चुकी हैं
फिर भी आधी जिंदगी और काटनी है; इस अंधेरे, बड़े संसार को बांटनी है
आज जब कर्म ही पूजा है मैं जानता हूं, आत्मा को मालिक की सेवा के और काबिल मानता हूं
पर वो कैसे कह सकता है सुंदर अक्षरों के लिए, जब खुद ही बुझाए हैं मेरी आंखों के दिए
मैं आसमान पर चिल्लाकर पूछना चाहता हूं,
पर धैर्य मेरी भुनभुनाहट का गला रेत देता है
हड़बड़ाया सा जवाब देता है, वो है ईश्वर!
इंसान क्या ही उसकी इच्छा पुराएगा? उसका मन उपहारों से लुभाएगा?
जो भी बैलों सी लगाम मुंह में डाले नधता जाता है
वही उस स्वर्गिक सत्ता वाले की सेवा कर पाता है
कहते हैं, उसका एक आदेश पाते ही हजारों  दौड़ जाते हैं, जमीन और सागरों के पार
यों ही वे उसकी सेवा करते हैं, जो लंगड़े होकर भी खड़े रहते हैं और करते हैं इंतजार

और जिसे मौत ही छीन सकती है मेरा वो फन, अब यूं फालतू है जैसे गरीब का यौवन
फिर सोचता हूं आज वो मुझे नकार देगा, सेवा न कर पाने पर फटकार देगा

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Original Poem



When I consider how my light is spent


Ere half my days in this dark world and wide,


And that one talent which is death to hide


Lodg’d with me useless, though my soul more bent

To serve therewith my Maker, and present

My true account, lest he returning chide,

“Doth God exact day-labour, light denied?”

I fondly ask. But Patience, to prevent

That murmur, soon replies: “God doth not need

Either man’s work or his own gifts: who best

Bear his mild yoke, they serve him best. His state

Is kingly; thousands at his bidding speed

And post o’er land and ocean without rest:

They also serve who only stand and wait.”

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जॉन मिल्टन(1608-74) एक अंग्रेज कवि थे। अंग्रेजी के क्लासिक कवियों में उनका नाम लिया जाता है। मिल्टन की आँखों की रौशनी उनकी उम्र के 42वें साल में पूरी तरह से चली गई थी। उसके बाद मिल्टन ने इसी घटना पर एक ग्रंथ लिखा। जिसका नाम था PARADISE LOST। यह उनका सबसे चर्चित ग्रंथ भी है। प्रस्तुत कविता उनकी सबसे चर्चित कविताओं में से एक है। इस कविता को अंग्रेजी की सर्वकालिक महान कविताओं में स्थान प्राप्त है। यह कविता पहली बार मैंने 11वीं में पढ़ी थी। तब मुझे बताया गया था कि मिल्टन कविता के आखिरी में ईश्वर में अपना विश्वास प्रकट कर रहा है। पर जब मैं बड़ा हुआ और ये कविता मैंने कई बार पढ़ी तो मुझे लगा कि दरअसल मिल्टन बड़े ही कुलीन तरीके से ईश्वर पर तंज कस रहा है। इसलिए इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने इस कविता का हिंदी में अनुवाद किया है। आशा है हम ईश्वर को लेकर अपनी तमाम बहसों में अपने-अपने स्तर से एक हल पर जल्द ही पहुंचेंगे।



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