नमस्ते आज मैं आपको 12th की poem को explain करूँगा On his blindness John Milton जब मैं समझा ये दुनिया रोशनी खो चुकी है और मेरी आंखें अंधी हो चुकी हैं फिर भी आधी जिंदगी और काटनी है; इस अंधेरे, बड़े संसार को बांटनी है आज जब कर्म ही पूजा है मैं जानता हूं, आत्मा को मालिक की सेवा के और काबिल मानता हूं पर वो कैसे कह सकता है सुंदर अक्षरों के लिए, जब खुद ही बुझाए हैं मेरी आंखों के दिए मैं आसमान पर चिल्लाकर पूछना चाहता हूं, पर धैर्य मेरी भुनभुनाहट का गला रेत देता है हड़बड़ाया सा जवाब देता है, वो है ईश्वर! इंसान क्या ही उसकी इच्छा पुराएगा? उसका मन उपहारों से लुभाएगा? जो भी बैलों सी लगाम मुंह में डाले नधता जाता है वही उस स्वर्गिक सत्ता वाले की सेवा कर पाता है कहते हैं, उसका एक आदेश पाते ही हजारों दौड़ जाते हैं, जमीन और सागरों के पार यों ही वे उसकी सेवा करते हैं, जो लंगड़े होकर भी खड़े रहते हैं और करते हैं इंतजार और जिसे मौत ही छीन सकती है मेरा वो फन, अब यूं फालतू है जैसे गरीब का यौवन फिर सोचता हूं आज वो मुझे नकार देगा, सेवा न कर पाने पर फटकार देगा _____________________________...